History of Gwalior Fort in Hindi - ग्वालियर किले का इतिहास

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History of Gwalior Fort in Hindi - ग्वालियर किला का इतिहास

ग्वालियर का किला मध्यप्रदेश में स्थित है। इस किले का निर्माण 8वीं शताब्दी में किया गया था। हालांकि परिसर के भीतर शिलालेखों और स्मारकों से पता चलता है कि यह किला 6वीं शताब्दी की शुरुआत में भी मौजूद था। ग्लालियर के किले में लाल बहुए पत्थर का इस्तेमाल किया गया है। यह किला भारत देश के सबसे बड़े किलों में से एक है। भारत के सांस्कृतिक विरासत और इतिहास में ग्लालियर के किला का विशेष महत्व है।


ग्वालियर का किला (Gwalior Fort) 3 वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैला हुआ है और किले की ऊंचाई 35 फीट है। ग्वालियर का किला ग्वालियर शहर का प्रमुख स्मारक है और यह गोपांचल पहाड़ी पर स्थित है। इस किले को सबसे अभेद्य किलों में से एक माना जाता है। ग्वालियर का किला अपनी महान वास्तुकला और समृद्ध अतीत के लिए जाना जाता है।


History of Gwalior Fort in Hindi
History of Gwalior Fort in Hindi

ग्वालियर का किला (Gwalior Fort) को बनने के बाद उसका नाम ग्वालिप्पा ऋषि के नाम पर रखा गया। इसपर प्रसन्न होकर ग्वालिप्पा ऋषि ने राजा सूर्यसेन को आशिर्वाद स्वरूप पाल (रक्षक) की उपाधि दी और कहा कि जबतक वे इस उपाधि को धारण करेंगे, तबतक किला उनके परिवार के कब्जे में रहेगा। ऋषि के आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद सूर्यसेन ने अपने नाम में पाल लगा लिया। सूर्यसेन पाल के 83 उत्तराधिकारियों ने इस किले पर राज किया। लेकिन 84वें राजा तेज करण ने पाल शीर्षक नहीं लगाया और किले को खो दिया।


पाल वंश के शासन के बाद ग्वालियर किले पर प्रतिहार वंश ने राज किया। पाल वंश का राज करीब 989 सालों तक रहा। 1023 ईस्वी में मोहम्मद गजनी ने इस किले पर आक्रमण किया लेकिन मोहम्मद गजनी को हार का सामना करना पड़ा। 1196 ईस्वी में लंबे घेराबंदी के बाद कुतुबुद्दीन ऐबक ने ग्वालियर किले अपने कब्जे में किया। हालांकि 1211 ईस्वी में फिर से उसे हार का सामना करना पड़ा। किले को फिर 1231 ईस्वी में गुलाम वंश के संस्थापक इल्तुतमिश ने अपने कब्जे में किया।


उसके बाद ग्वालियर का किला (Gwalior Fort) महाराजा देववरम के अधिकार में आ गया और तोमर राज्य की स्थापना की। इसी वंश का एक राजा काफी प्रसिद्ध हुआ। तोमर वंश के सबसे प्रसिद्ध राजा थे मानसिंह। राजा मानसिंह ने 1486 से लेकर 1516 तक किले पर राज किया। उन्होंने अपनी पत्नी मृगनयनी के लिए गुजारी महल भी बनवाया था। किले पर तोमर वंश का राज 1398 से 1505 ईस्वी तक रहा।


इसके बाद हुमायूं ने ग्वालियर पर हमला किया और ग्वालियर किले को अपने कब्जे में ले लिया। बाद में शेरशाह सूरी ने हुमायूं को युद्ध में हराकर किले पर अधिकार किया और ग्वालियर के किले को सूरी वंश के अधीन कर लिया। 1556 में हेमू (हेमचंद्र विक्रमादित्य) ने पानीपत की दूसरी लड़ाई में आगरा और दिल्ली में अकबर को हराकर हिंदू राज की स्थापना की। उसके बाद हेमचंद्र ने अपनी राजधानी फिर से दिल्ली कर ली। इसके बाद अकबर ने ग्वालियर किले पर आक्रमण कर दिया और किले को अपने कब्जे में ले लिया।


1736 में किले पर जाट राजा महाराजा भीम सिंह राणा ने इसपर अधिकार किया। उन्होंने 1756 तक इसे अपने कब्जे में रखा। 1779 में सिंधिया कुल के मराठा छत्रप ने ग्वालियर का किला (Gwalior Fort) जीत लिया और यहां पर अपनी सेना तैनात कर दी। लेकिन बाद में ग्वालियर का किला सिंधिया राजा से ईस्ट इंडिया कंपनी ने छीन लिया। फिर 1780 में इसका नियंत्रण गौंड राणा छत्तर सिंह के पास चला गया। उन्होंने मराठों से ग्वालियर का किला छीन लिया। 1784 में महादजी सिंधिया ने इसे वापस हासिल कर लिया। 1804 और 1844 के बीच इस किले पर अंग्रेजों और सिंधिया के बीच नियंत्रण बदलता रहा। हालांकि जनवरी 1844 में महाराजपुर की लड़ाई के बाद ग्वालियर का किला फिर से सिंधिया के कब्जे में आ गया।


उसके बाद 1857 का विद्रोह हुआ। 1 जून 1858 को झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने अपने मराठा विद्रोहियों के साथ मिलकर ग्वालियर किले पर कब्जा किया। लेकिन 16 जून को फिर से एक अंग्रेज जनरल ह्यूज के नेतृत्व में ब्रिटिश सेना ने किले पर हमला कर दिया। लेकिन हमले के बाद झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों का डटकर मुकाबला किया और किले पर कब्जा नहीं करने दिया। लेकिन इसी दौरान रानी लक्ष्मीबाई को एक गोली लग गई और अगले दिन 17 जून को उनकी मृत्यु हो गई। इस लड़ाई को भारतीय इतिहास में ग्वालियर की लड़ाई के नाम से जाना जाता है। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की मृत्यु के बाद ग्वालियर का किला (Gwalior Fort) फिर से अंग्रेजों के कब्जे में आ गया। स्रोत - हन्ट आई न्यूज

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